Friday, October 21, 2011

वृक्ष उवाच


वृक्ष उवाच

आओ, उस रौशनी को देखें

जो अन्धेरों से लड़ रही है

अपने को जला कर

तुम्हारी और मेरी राह

आसान कर रही है

तुम चाहो तो उस रौशनी का,

उस दिये का, उस तेल और बाती का,

धन्यवाद कर सकते हो

आज की रात,

या फ़िर

खुद दिया बन, कर सकते हो रौशन

औरों के जीवन को

जो भरा है- अभावों से,दुःखों से,

उपेक्षाओं और तिरस्कार से,

या फ़िर कोशिश कर इक दिया और

जला सकते हो तुम

तुम्हारे पास तो रौशनी है

इस बार बस् अएक बार

इस रौशनी को बाँट कर तो देख मेरे यार

तेरी रौशनी कुछ और बढ़ जाएगी

तो चल मेरे साथ

मिल कर अज रौशनी बाँटें

इस दिवाली की रात

क्या तुम -

चलोगे?

Saturday, October 15, 2011

दीपावली शुभाकामना


दीपावली २०११

चलो इस बार फ़िर

एक मिट्टी के दिये से दोस्ती करें

उसकी

टिमटिमाती हल्की पीली लौ में

अन्धेरे और रौशनी के सम्बन्धों को परिभाषित करें

कि क्या

रोशनी और अन्धेरे का युद्ध शाश्वत है

या फ़िर

रौशनी का सन्दर्भ घना अन्धेरा है?

सम्बन्ध द्वेष का है सदा क्या

या

दोनों की समञ्जस सुन्दरता का?

मेरे मित्र

तुम्हारी तो किसी दिये दोस्ती होगी ही

तुमने तो और दिये से दिए जलाए होंगे

अपनी मनुष्यता के फ़र्ज निभाए होंगें

तो चलो, इस दीपावली पर

इस बार मुझे भी साथ ले चलो

मेरी भी किसी मिट्टी के दिये से

दोस्ती करा दो

उसकी रोशनी में नहला दो, और

मुझे

आगे के दो कदम चलने का

रास्ता तो दिखला दो ! ! !

मिट्टी के दिए की रौशनी से आपको और आपके परिवार को प्रकाश भरी शुभकामनाएँ

सादर

आशुतोष आंगिरस