Sunday, January 2, 2011

लो एक नई सतरंगी किरण

लो एक नई सतरंगी किरण

चलो एक बार फ़िर
सूरज की किरणॊं से बुना
इक स्वेटर
किसी ठण्ड से सिकुड़ते बच्चे को पहना दें
या फ़िर चमकती किरणॊं का भॊजन
किसी भूखे को करा दें
या फ़िर
रोशन किरणों से किसी का भय दूर हटा दें
या फ़िर
बर्फ़ से जमे भावों को पिघला दें
मनुष्यता को इक विश्वास दिला दें
कि यह सूरज अभी जीवित है
साँस लेता है और कभी कभी
गुनगुनाता भी है
चलो इस वर्ष नई सुबह में
फ़िर सूरज से हाथ मिलाएँ
इक नई दुनिया बनाएँ

क्या यह नववर्ष है _ _ _?

क्या यह नववर्ष है _ _ _?

यदि विश्वास है आपको कि

वास्तव में यह नववर्ष है

जहाँ

शीत की गोद में

ठिठुराती गरीबी को कुछ गर्म कपड़े मिलेंगे

और भूख को एक गर्म कप चाय

तो

आओ मिल कर एक बार फ़िर

सूर्य किरणों को पेन बना

चाँदनी की स्याही से

आकाश के उर पर

लिखें मानवीय भविष्य की

इक नई कविता

जिसमें

भूख के अनुकूल रोटी-पानी

भय से पर्याप्त सुरक्षा

कुछ सुन्दरता के क्षण

फ़िर

हो जिज्ञासा का अधिकार

जिसमें चाहिए आपका कुछ सहयोग

कुछ सम्वेदना का और कुछ धन का

फ़िर सिर्फ़ कैलण्डर की तारीख नहीं बदलेगी

पिघलेगी बर्फ़, रुकी नदी बहेगी

और मेरे और आपके घर का कूड़ा

नहीं बीनना पडेगा किसी बिन चप्पल के बच्चे को

तो क्या मैं मान लूँ

तुम नववर्ष लाने में मदद करोगे? मेरे मित्र !

आशुतोष आंगिरस