Saturday, January 14, 2012

sanskrit sahitya mein rashtriya chetana


डी० ए० वी० कालेज, सढौरा (जिला यमुनानगर)

(संस्कृत की पुन:संरचना योजना के अधीन)

एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

संस्कृत साहित्य में राष्ट्रीय चेतना

प्रायोजक : हरियाणा संस्कृत अकादमी, पंचकूला

आयोजक : संस्कृत विभाग, डी० ए० वी० कालेज, सढौरा

दिनाँक - १० फरवरी, 2012, शुक्रवार

समय : 9.30 बजे प्रात: स्थान : कॉलेज सभागार

मान्यवर,

संस्कृत की पुन:संरचना योजना के अधीन संस्कृत विभाग, डी० ए० वी० कालेज, सढौरा तथा हरियाणा संस्कृत अकादमी, पंचकूला संयुक्त रूप से आयोजित संगोष्ठी में सहभागिता, विचार विमर्श के लिए सादर साग्रह आमन्त्रित है।

संस्कृत साहित्य के सन्दर्भ में राष्ट्र का सीधा सीधा सम्बन्ध निम्नलिखित प्रश्नों से है कि- १.राष्ट्र क्या है?२. राष्ट्र किसे कहते हैं?३ राष्ट्र बनता कैसे है या इसके मूल तत्त्व क्या हैं और कैसे समायोजित होते हैं? ४. किसका होता है राष्ट्र? ५. कौन होते हैं राष्ट्र-जन?६. भारत राष्ट्र है या नहीं, विशेष रूप से राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से? ७. यदि भारत राष्ट्र है तो यहां के राष्ट्र-जन कौन हैं? ८. भारत (संवैधानिक रूप से इण्डिया) की संस्कृति की संज्ञा क्या है? ९. किस जनसमूह के तप-त्याग, श्रम-साधना, किन लोगों की प्रेरणाओं से, अनुभवों से भारत राष्ट्र बना है? ये प्रश्न संस्कृत साहित्य के विद्वानों से ऐसे उत्तर की अपेक्षा करते हैं जिसका एक यथार्थवादी पक्ष तो परम्परा से सम्बद्ध हो और दूसरा यथार्थवादी पक्ष विश्व के अन्य देशों की राष्ट्रियता ताकि हम सभी उस राष्ट्र का अनुमोदन अथर्ववेद के मन्त्र से कर सकें जिसका समर्थन इण्डिया का संविधान नहीं करता है- भद्रं इच्छन्त ऋषयः स्वर्विदः तपो दीक्षां उपसेदुः अग्रे। ततो राष्ट्रं बलं ओजश्च जातम्। तदस्मै देवा उपसं नमन्तु॥ (११-४१-१) यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि राज्य (state) और राष्ट्र (nation) को पर्यायवाची मानने की गल्ती नहीं करनी चाहिए क्योंकि राज्ययीय एकता से राष्ट्रियता का निर्माण नहीं हुआ करता- यह इतिहास सिद्ध है। राष्ट्रिय चरित्र राष्ट्रियता की पहचान बनता है- इसी के लिए संस्कृत शास्त्र की अन्तर्धाराओं का विश्लेषण करना आज की संगोष्ठी का लक्ष्य है-जिसमें आप सबके वैचारिक विमर्श अपेक्षित है। राष्ट्र चेतना को ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करना, राष्ट्रियता का परिभाषिकीकरण, राष्ट्रियता का राजनैतिक गतिविधि के रूप में पहचान और राष्ट्रियता को एक भाव रूप में परिभाषित करने में आपका सहयोग अपेक्षित है।

इस संगोष्ठी को आयोजित करने का दूसरा मूख्य कारण है कि संवैधानिक रूप से विकसित की जा रही राष्ट्रियता का संस्कृत की चेतना पर आधारित राष्ट्र भावना से कैसे समायोजित और विकसित करें कि वह सेक्यूलरिज्म की सीमा का उल्ल्घन भी न करे और सभी उस राष्ट्र चेतना धार्मिकता का आरोप लगाए बिना स्वीकार भी करें। अतः इस संगोष्ठी में संस्कृत विभाग इतिहास, राजनीति-विज्ञान, अंग्रेजी और हिन्दी के माननीय प्राध्यापकों को भी सादर आमन्त्रित करता है कि वे संस्कृत की राष्ट्र चेतना का मूल्यांकन भी करें और उसे विकसित करने में सहयोग करें ताकि संस्कृत का उपयोग अन्य विषय भी कर सकें।

आपकी उपस्थिति के विनम्र अनुरोध के साथ सादर

विशेष : 1. संगोष्ठी का लक्ष्य विवाद नहीं सम्वाद है।

2. सामान्य श्रेणी का मार्ग व्यय अकादमी द्वारा नियमानुसार दिया जायेगा।

3. कृपया समय का सम्मान इसलिए करें ताकि चर्चा के लिए अधिक समय मिल सके।

डा० प्रवीन शर्मा डॉ. सुधीर कुमार डॉ. रणपाल सिंह

संयोजक एवम् अध्यक्ष निदेशक प्राचार्य

संस्कृत विभाग हरियाणा संस्कृत अकादमी, डी० ए० वी० कालेज,

पंचकूला यमुनानगर

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