Saturday, September 27, 2008

१ उन्मेष


मित्रवर,
सनातन संस्कृत ब्लाग में आपका हार्दिक स्वागत है।
यह ब्लाग संस्कृत के उन पक्षों को उद्धृत करने के लिए रचा गया है जिनसे सामान्यत: संस्कृतज्ञ बचते हैं। मनोविज्ञान, प्रबन्धन, लोकप्रशासन, काऊंसलिग, आधुनिकता, यथार्थवाद, आदि सभी विषयों पर मैं आप सभी से इस ब्लाग के माध्यम से चर्चा करना चाहता हूं, कृपया मेरा सहयोग करें।
मैं संस्कृतज्ञों और संस्कृत के प्रति सहृदयता का भाव रखने वाले किसी भी क्षेत्र से सस्म्बन्धित व्यक्ति से सादर आग्रह करता हूं कि मेरी सहायता करें। अपने प्रश्न, सूचनाएं, जानकारी देकर मुझे अनुग्रहीत करें। मैं जानना चाहता हूं कि संस्कृत मूल चेतना क्या है, कैसी है? उसका स्वरूप क्या है? या विगत ६० दशकों में संस्कृत में कौन कौन से नए प्रयोग हुए हैं जो न केवल सार्थक रहे हैं और प्रासंगिक भी रहे हैं और कौन से वे विद्वज्जन हैं जिन्होंने प्रयोग किए हैं? वन्दे मातरम् के बाद ऐसी कोई संस्कृत की कविता/श्लोक/काव्य/कथा/नाटक लिखा गया जिसने किसी आन्दोलन का सूत्रपात किया हो या सामाजिक परिवर्तन किया हो या जिसे अन्य लोगों ने मान्यता प्रदान की हो? पिष्टपेषणपूर्णा कविताएं , लेख लिख कर संस्कृत के नाम पर क्या अर्जित किया गया? व्याख्या और पुन:व्याख्या के अतिरिक्त एसा संस्कृतज्ञों ने क्या नया किया गया जो न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी सार्थक एवम् फ़लदायक रहा हो? बहुत पीडा होती है कि वर्तमान समस्याओं का उत्तर देने की अपेक्षा, समाधानों का प्रतिभागी होने की अपेक्षा उपदेशक सा व्यवहार करना शुरु कर देते हैं?
कृपया विचार करें?
अभी इतना ही,
पुन: मिलाम:सम्वादयाम:
इति
आशुतोष आंगिरस

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