Wednesday, November 6, 2013

२०१३ अमावस की दीपावली

२०१३ अमावस की दीपावली
 
मित्र मेरे !
हर बार की तरह
इस बार भी तुम
घर की चारदीवारी और आंगन में शायद
कुछ मिट्टी के दीए
सरसों के तेल में भीगी
रुई की बत्तियाँ जलाओगे
लेकिन मित्र,
अगर हो सके तो इस बार
कम से कम एक बार तो
एक दीया जलाना
किसी अन्जान गरीब के घर
एक अस्पताल में तो एक सिनेमाघर में
एक विद्यालय में तो एक फ़ैक्टरी में
एक कारपरेट हाऊस में तो एक अनाथालय में
एक  जलाना संसद में तो एक माओ के घर
एक तो जरूर जलाना किसी अमीर बहुत अमीर के घर
और फ़िर यदि  कुछ बच जाएं दीए
तो जलाना
मानवीय सम्बन्धों के और सम्वेदनाओं के नाम
लोकतन्त्र, देश , शहीदों के नाम
मनुष्यता और ज्ञान और प्रेम के नाम
और इस सबके लिए तुम्हें संविधान से पूछने की जरूरत नहीं
न ही कानून के सहारे की आड़ चाहिए
सिर्फ़ मेरे विश्वास के लिए
एक सिर्फ़ सद्भावना के लिए
एक बार एक एक दीए तो जला ही दो

मित्र! क्या तुम जलाओगे वो दीए इस बार???

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