Sunday, January 2, 2011

लो एक नई सतरंगी किरण

लो एक नई सतरंगी किरण

चलो एक बार फ़िर
सूरज की किरणॊं से बुना
इक स्वेटर
किसी ठण्ड से सिकुड़ते बच्चे को पहना दें
या फ़िर चमकती किरणॊं का भॊजन
किसी भूखे को करा दें
या फ़िर
रोशन किरणों से किसी का भय दूर हटा दें
या फ़िर
बर्फ़ से जमे भावों को पिघला दें
मनुष्यता को इक विश्वास दिला दें
कि यह सूरज अभी जीवित है
साँस लेता है और कभी कभी
गुनगुनाता भी है
चलो इस वर्ष नई सुबह में
फ़िर सूरज से हाथ मिलाएँ
इक नई दुनिया बनाएँ

1 comment:

pardeep said...

very nice and romantic. i am proud of you you are intelligent student of sanskrit . PARDEEP SHASTRI M.PHIL PERIYAR HOSTEL JNU NEW DELHI.