Saturday, September 25, 2010

Defining relationship of Media & Indian Mindset (With special reference to integrating social value system)


एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

मीडिया एवम् भारतीय मानस के सम्बन्धों का परिभाषिकीकरण

(समन्वित सामाजिक मूल्यों के सन्दर्भ में)

Defining relationship of Media & Indian Mindset

(With special reference to integrating social value system)

दिनाँ - 27 अक्तूबर, 2010,

समय- प्रातः ९.०० बजे

प्रायोजक - विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली।

आयोजक मास कम्यूनिकेशन विभाग, एस० डी० कालेज (लाहौर), अम्बाला छावनी

अकादमिक सहयोग- इन्सटिच्य़ूट आफ़ मास कम्यूनिकेशन एण्ड मीडिया टेक्नालोजी, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र

मान्यवर_________________,

मास कम्यूनिकेशन विभाग, एस० डी० कालेज (लाहौर), अम्बाला छावनी इन्सटिच्य़ूट आफ़ मास कम्यूनिकेशन एण्ड मीडिया टेक्नालोजी के अकादमिक सहयोग से उपरोक्त विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पत्र प्रस्तुति एवम् समालोना के लिए आपको सादर आमन्त्रित करने में गौरवान्वित अनुभव करता है।

मीडिया एक व्यापक अर्थ वाला बहु आयामी शब्द है जिसने अपनी विस्तार और विकास की गति से सारे विश्व को विचलित इस अर्थ में किया है कि एक ओर सूचना-प्रसार-तन्त्र के द्वारा सारे विश्व को एकीकृत कर दिया है तो दूसरी ओर सभी सभ्यताओं, उनकी परम्पराओं, उनके मूल्यों की जड़ो को उखाड़ दिया है। मीडिया का क्रान्तिकारी प्रभाव मनुष्य और समाज पर ऐसा हुआ है कि हर विचारशील एवम् संवेदनशील मनुष्य को यह सोचना पड़ रहा है कि मनुष्यता का मूल कहाँ है और उसकी जड़ें कहाँ है ?विशेष रूप से भारतीय समाज के सन्दर्भ में मीडिया की भूमिका अत्यन्त सूक्ष्म रूप से विचारणीय है। क्योंकि अपने मूल रूप में भारतीय समाज–अविस्तारवादी ओर अहिंसक रहा है। मीडिया का पदार्पण भारत में एक अकाल-प्रसव की तरह है क्योंकि भारतीय मन मीडिया से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिये तैयार नहीं था जबकि पश्चिम की औद्योगिक क्रान्ति ने मीडिया की सशक्त पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी, जिसमें पश्चिमी समाज मीडिया के व्यावसायिक उपयोग के प्रति अत्यन्त सजग था। लेकिन इसके विपरीत भारतीय मन इस तरह की सूचना क्रान्ति के प्रभावों के लिये वस्तुतः तैयार नहीं था, जिससे भारतीय समाज की भाषा, व्यवहार, चेतना एवम् संस्कारों में विसंगतियाँ पैदा हो गई। इन विसंगतियों के कारण भारतीय मानस में एक ऐसा व्यामोह उत्पन्न हुआ जिससे भारतीय समाज में बौद्धिक एवम् भावनात्मक विडम्बनायें पैदा हो गई हैं। शब्द तथ्यों को पूरी तरह से कह नहीं पा रहे हैं। जो कुछ मीडिया के द्वारा कहा जा रहा है वह सब कितना प्रासंगिक व उचित है- यह बात प्रश्न की परिधि से बाहर नहीं हैं? इसलिये वर्तमान परिस्थितियों में जहां व्यक्ति और समाज बिखराव की ओर चल रहे है। या सारी व्यवस्थायें अपने विस्तार के भार से ही बे-सम्भल होती जा रही है वहां प्रत्येक संवेदनशील और दायित्वपूर्ण व्यक्ति के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वह एक ऐसी दृष्टि की खोज करे जो भारतीय मूल्यों को समझें, व मीडिया के प्रभावों का समालोचन कर दोनों के बीच सन्तुलन स्थापित कर सके। जिससे मीडिया भारतीय समाज को ऐसी दिशा में अग्रसर कर सकें जो मनुष्यता को भविष्य के प्रति आश्वासन दें सकें ।

सम्भावित विचार बिन्दु

१. मीडिया तथा भारतीय पारिवारिक मूल्यों का संकट

२. मीडिया की स्वतन्त्रता तथा भारतीय लोक मानस पर प्रभाव

३. मीडिया के सन्दर्भ में वैयक्तिक व सामाजिक मूल्य

. मीडिया का सामाजिक मूल्यों के प्रति उत्तरदायित्व

५. भारतीय राजनैतिक समस्याएं एवम् मीडिया

६. भारतीय शिक्षा प्रणाली एवम् मीडिया

७. भारतीय प्राशासनिक पारदर्शिता एवम् मीडिया की भूमिका

८. सामाजिक – आर्थिक न्याय एवम् मीडिया

९. मीडिया की भारतीय सन्दर्भ में चुनौतियाँ एवम् दिशाएँ

१०. मीडिया एवम् मानवाधिकार की संस्कृति

आशुतोष आंगिरस प्रो० मनीष गोयल प्रो० राजबीर सिंह डा० देशबन्धु

संगोष्ठी निदेशक संगोष्ठी सचिव निदेशक प्राचार्य

आई एमसीएमटी एस० डी० कालेज

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अम्बाला छावनी 09896394569 09996722333 09416007826 09812053283

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