प्रतिष्ठायाम्
श्री राजन गुप्ता,
आई० ए० एस०
फ़ाईनेंशियल कमिश्नर कम एजुकेशन सेक्रेटरी
हरियाणा सरकार
चण्डीगढ.।
उचित माध्यम द्वारा
विषय – हरियाणा उच्चतर शिक्षा में सार्थक मानवीय परिवर्तन के सन्दर्भ में।
मान्यवर,
दिसम्बर मास की १५ तारीख को करनाल नगर के दयाल सिंह कालेज में हरियाणा कालेज टीचर्ज द्वारा आयोजित उपरोक्त सन्दर्भ में जो संगोष्ठी में आप द्वारा जो प्रश्न प्राध्यापकों के विचार के लिए पूरी निष्ठा एवम् सहृदयता से उपस्थापित किए गए थे उसी सम्वाद श्रृंखला को सनातन धर्म कालेज (लाहौर), अम्बाला छावनी का संस्कृत विभाग अग्रसर करते हुए कुछ विचार अपनी भाषा में आपसे सांझा करने को तत्पर है, जैसे कि-
१. हरियाणा की उच्चतर शिक्षा प्रणाली में छात्रों को क्या यह सिद्ध करना है कि भारत मात्र एक व्यापारिक मण्डी है और हरियाणा के छात्र का भारत से सम्बन्ध मात्र धन्धे का ही है या भारत एक ऐसा देश है जिसके लिए हर भारतीय को जीना मरना चाहिए?
२. क्या वर्तमान उच्चतर शिक्षा का लक्ष्य केवल पूँजीवादी व्यवस्था के उद्योगों के लिए कर्मचारी तैयार करना है या ऐसे विचारवान मनुष्य की सम्भावना को तैयार करना है जो भविष्य की मानवता को आश्वस्ति प्रदान कर सके ताकि विश्व एक बेह्तर और सुरक्षित स्थान बन सके? (विचारक से अर्थ बिल्कुल नहीं है कि जिसे राजनेता, प्रशासनिक आधिकारी या व्यापारी एक नारा देकर समाज में भेज दें और वे उसे न्यायोचित मान कर उसकी सिद्धता में लगे रहें। इसका अर्थ है मुक्त विचारक।)
३. हरियाणा उच्चतर शिक्षा में यदि भारत एक देश है तो उस देश की आवश्यकताओं को सार्थक रूप से पूरा करने के लिए बी०ए०/ बी०एस०सी०/ बी०काम० आदि का स्थापन्न विशिष्ट शैक्षिक-धाराओं (educational streams ) से करना चाहिए जैसे कि एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रीम, टेक्निकल स्ट्रीम, जुडिशियल स्ट्रीम, लेबर स्ट्रीम, मिलिटरि स्ट्रीम, क्लैरिकल स्ट्रीम, बिजिनस स्ट्रीम, टीचिंग स्ट्रीम, साईंटिस्ट स्ट्रीम, थिंकर्स स्ट्रीम, क्रिएटिव स्ट्रीम आदि आदि तथा इन स्ट्रीम्स के सन्दर्भ में विभिन्न विषयों को पढाया जाना चाहिए ताकि देश की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
४. उच्चतर शिक्षा में भाषाओं तथा साहित्य की सार्थकतापूर्ण उपयोगिता को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता इस सन्दर्भ में है कि शिक्षा से किस प्रकार के मनुष्य की निष्पत्ति करना चाहते है – क्या हरियाणा को साईबोर्ग्स चाहिए या सम्वेदनशील सहृदय मनुष्य चाहिए?
५. उच्चतर शिक्षा में संस्कृत भाषा की उपयोगिता पर साधिकार आक्षेप सिर्फ़ इसलिए किया जाता है क्योंकि संस्कृत के हाथ पैर बाँध कर उसे दूसरे विषयों से प्रतियोगिता करने को कहा जाता है। इस सन्दर्भ में संस्कृत की यह संक्षिप्त कथा अत्यन्त सटीक है कि उच्चतर शिक्षा नाम के एक राजा के संस्कृत, साईंस और कामर्स नाम के तीन कुमार थे जिनका समयानुकूल राजकुमार पद पर अभिषेक करने का राजा के द्वारा विचार करने पर प्राचार्य नामक एक मन्त्री ने उनकी परीक्षा द्वारा योग्यता का निर्णय करने का सुझाव दिया कि तीनों कुमारों को सौ सौ रूपए दे दी जाँए और उन रूपयों से तीनों अपने अपने महल को एक महीने भर दिया जाए और जिसका महल सबसे अधिक भरा होगा उसे राजकुमार पद पर अभिषक्त किया जाए। एक महीना होते ही प्राचार्य मन्त्री सहित उच्चतर शिक्षा नामक राजा निर्णय करने के लिए आ गए और देखा कि कामर्स कुमार ने आपना महल शेयर बाजार से नोटों से भर दिया है और साईंस कुमार ने अपना महल टी०वी, कम्प्यूटर से भर दिया है और संस्कृत कुमार का महल सिर्फ़ प्रकाश से भरा था क्योंकि उसने सौ रूपए के मिट्टी के दीए खरीद कर जला दिए थे यह देख कर प्राचार्य मन्त्री और उच्चतर शिक्षा नामक राजा किसी निर्णय पर नही पहुँच पाए हैं कि किसे पदाभिषिक्त करें?
६. इसके साथ यह भी विचारणीय है कि प्राध्यापक से सर्वकार, प्राचार्य तथा प्रबन्धक समितियां किस आधार पर नैतिक एवम् सम्वेदनशील व्यवहार की अपेक्षा करते हैं जबकि वे स्वयं शिक्षा के माध्यम से यह प्रचारित कर रहे हैं कि शिक्षा एक धन्धा है और धन्धे में ईमानदारी या सम्वेदनशीलता या मनुष्यता की बात क्या कामर्स, विज्ञान सिखा सकते हैं? प्राध्यापक की स्वतन्त्रता का वर्तमान व्यवस्था में क्या स्थान है जिससे वह विकसित और प्रौढ.हो सके?
सनातन धर्म कालेज, अम्बाला छावनी का संस्कृत विभाग उपरोक्त वैचारिक प्रश्नों को प्रस्तुत करने का साहस निम्नाँकित उपलब्धियों से करना चाहता है (हालाँकि संस्कृत की दृष्टि से उपलब्धियों की चर्चा करना निकृष्ट/हीन मानसिकता का प्रतीक है लेकिन वर्तमान व्यवस्था का सम्बन्ध मनुष्य के अस्तित्व की सार्थकता से न होकर उसकी मात्र उपलब्धियों से है|)
१. यू०जी०सी०, नई दिल्ली से मेजर रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए ३लाख ८५हजार की अनुदान राशि संस्कृत के आधार पर व्यावहारिक मनोविज्ञान की स्थापना हेतु प्राप्त किया और इस विषय को हरियाणा में प्रस्तुत करने वाला प्रथम विभाग है।
२. हरियाणा में सङ्गणकीय संस्कृत (Computational Sanskrit)) को प्रारंभ करने वाला प्रथम विभाग है और इस विषय में संस्कृत विभाग ने प्रध्यापकों, विश्वविद्यालय के शोध छात्रों एवम् अन्य छात्रों के कार्यशालाओं को आयोजित कर प्रशिक्षित किया है।
३. हरियाणा का यह प्रथम विभाग है जिसका ALLSOFT SOLUTIONS Pvt. Ltd. नामक प्राईवेट साफ़्टवेयर कम्पनी से संस्कृत के विकास के लिए अनुबन्ध है। प्रमाणस्वरूप कम्पनी और संस्कृत विभाग द्वारा दो सी०डी० संस्कृत ग्रन्थों की शिक्षा के बाजार में प्रस्तुत की गई है जिसका विमोचन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के माननीय उप-कुलपति श्री वाजपेयी द्वारा किया गया था और भविष्य में शीघ्र ही अन्य उपलब्धियों को प्रस्तुत कर संस्कृत की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों को प्रत्युत्तर देने के लिए तत्पर है।
४. हरियाणा का यह प्रथम विभाग है जिसने ऐसी अन्तः-वैषयिक राष्ट्रीय संगोष्ठियां सफ़लतापूर्वक आयोजित की जिनका सम्बन्ध मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति, संविधान, इतिहास, वाणिज्य, अंग्रेजी से है और भविष्य में जीवविज्ञान, भौतिकी आदि के साथ वैचारिक सम्भावनाओं पर प्रयोग करने का निश्चय है।
यदि उपरोक्त उपलब्धियां संस्कृत विभाग की वैचारिक एवम् व्यावहारिक विश्वसनीयता की स्थापना के लिए पर्याप्त हैं तो संस्कृत विभाग आपसे अनौपचारिक चर्चा के लिए विनम्र निवेदन करता है ताकि देश और केवल मनुष्यता के हित में हरियाणा की उच्चतर शिक्षा का आमूलचूल रूपान्तरण किया जाए।
सादर
भवदीय़
आशुतोष आङ्गिरस, प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, सनातन धर्म कालेज (लाहौर), अम्बाला छावनी। १३३००१ ई-मेल :- sriniket2008@gamil.com http://sanatansanskrit.blogspot.com
अग्रेषित
डा० देशबन्धु
प्राचार्य
सनातन धर्म कालेज (लाहौर)
अम्बाला छावनी।१३३००१
प्रति –
१. आयुक्त, हरियाणा उच्चतर शिक्षा विभाग, पञ्चकूला।
२. उप-कुलपति, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र।
३. उपकुलपति, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक।
४. प्रधान, हरियाणा कालेज टीचर्स एसोसिएशयन, अम्बाला।
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