वृक्ष उवाच
आओ, उस रौशनी को देखें
जो अन्धेरों से लड़ रही है
अपने को जला कर
तुम्हारी और मेरी राह
आसान कर रही है
तुम चाहो तो उस रौशनी का,
उस दिये का, उस तेल और बाती का,
धन्यवाद कर सकते हो
आज की रात,
या फ़िर
खुद दिया बन, कर सकते हो रौशन
औरों के जीवन को
जो भरा है- अभावों से,दुःखों से,
उपेक्षाओं और तिरस्कार से,
या फ़िर कोशिश कर इक दिया और
जला सकते हो तुम
तुम्हारे पास तो रौशनी है
इस बार बस् अएक बार
इस रौशनी को बाँट कर तो देख मेरे यार
तेरी रौशनी कुछ और बढ़ जाएगी
तो चल मेरे साथ
मिल कर अज रौशनी बाँटें
इस दिवाली की रात
क्या तुम -
चलोगे?