“वेदव्यास
संस्कृत की पुनःसंरचना योजना”
के अधीन आयोजित
एक दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला
वैदिक सकल सुख सम्पद् सूची
निर्माण एवम् नीति निर्माण
DEVELOPING VEDIC GROSS NATIONAL HAPPINESS POLICY
दिनाङ्क- १३ - ०९- २०१४, दिन -- शनिवार
स्थान – न्यू सेमिनार हाल, समय – प्रातः १०.०० बजे
आयोजक - संस्कृत विभाग, सनातन् धर्म कालेज ,
(लाहौर), अम्बाला छावनी।
अकादमिक सहयोग एवम् समर्थन – सनातन
धर्म रिसर्च एण्ड डेवेल्पमेण्ट सेण्टर, अम्बाला ।
____________________________________
_____________________________________
_____________________________________
मान्यवर,
उपरोक्त विषय के स्थान, तिथि एवम् समय के सम्बन्ध में आप सादर सस्नेह सार्थक उपयोगितापूर्ण लाभ पुरुषार्थकारी सम्वाद
के लिए कार्यशाला में आमन्त्रित हैं ।
वैदिक जी० एन० एच०पालिसी विचार का मूल आधार -
आ
ब्रह्मन्ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुवोढानड्वानाशुः सप्तिः
पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो
युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकमेनिकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फ़लवत्यो न ओषधयः
पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्॥ माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद, २२.२२ समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः । समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥ ऋग्वेद, मण्डल १०, सूक्त १९१, ऋचा ४
वैदिक जी०एन०एच० नीति क्या है ?
The goal of a society should be the integration of material development
with psychological, cultural, and spiritual aspects – all in harmony with the
Earth.
इस वैदिक जी० एन० एच० का सार और रूप (form and
essence) क्या है जिसके
आधार पर इसकी दशा और दिशा का मूल्यांकन किया जाना चाहिए - वह सम्भवतः
तीन स्तरों पर हो
सकता है –
- एक है भौगोलिक आर्थिक-जैविक स्तर पर,
- दूसरा ऐतिहासिक अविच्छिन्न विकास के स्तर पर और
- तीसरा है अचल मूल्यों के स्तर पर ।
प्रथम स्तर पर वैदिक जी० एन०
एच० 'काम' और 'अर्थ' सिद्ध करने में सहायता कर
सकता है, दूसरे स्तर पर धर्म नामक
पुरुषार्थ को सिद्ध करने में सहायता कर सकता है और तीसरे स्तर पर मोक्षधर्म
अर्थात् शुद्ध आनन्द जो ऑंशिक रूप से उत्सव, क्रीड़ा, कला, संगीत,
साहित्य में और पूर्ण रूप से जीवन को यज्ञार्पित रूप
से जीने के मूल्यों की स्थापना करने में योगदान कर सकता है जैसे गान्धी, विनोबा, अरविन्द, विवेकानन्द, आदि ने किया ।
वैदिक जी०एन०एच० का सार जितना
आध्यात्मवादी है उतना ही भौतिकवादी भी है। यह इहलोकवादी एवम् कामना प्रधान हैं
परन्तु साथ ही साथ श्रद्धा सम्पृक्त एवम् रहस्यप्रवण भी
है। इस प्रकार के वैदिक जी० एन० एच० का आविर्भाव सम्भवत: भय, लोभ से ही नहीं
बल्कि सौन्दर्यबोध और रहस्यबोध से भी हुआ हैं। इसका प्रस्थान बिन्दु
प्राग्वैदिक है परन्तु वह वैदिक और वैदिकोत्तर दोनों के साथ-साथ
आज भी प्रवाहमान है क्योंकि रहस्यबोध, सौन्दर्यबोध तथा श्रद्धा-बोध भी क्षुधा, तृषा की तरह
मनुष्य की सहजात वृत्ति है। इसलिए वैदिक जी० एन० एच० मुट्ठी भर
पढ़े लिखे, शिक्षित लोगों की सम्पत्ति नहीं है, बल्कि जनसमूह की
दृष्टिभङ्गी है, यह जनसमूह की विश्व दृष्टि है। यह वैदिक जी० एन० एच० समस्त
जीवन प्रक्रिया को समाविष्ट किए हुए और धारण किए हुए चलता
है - चूल्हा, चक्की, शिल्प से लेकर नृत्य गीत आदि तक इसका
विस्तार है। इसलिए वैदिक जी० एन० एच० के विषय में यह कहना सम्भव है
कि -
- वैदिक जी० एन० एच०पालिसी/ नीति अपौरुषेय हैं क्योंकि इनका जनक
व्यक्ति नहीं परम्परा है।
- दूसरा वैदिक जी०एन०एच० का अर्थ लोकविद्या है।
- तीसरा वैदिक जी०एन०एच० की दृष्टिभङ्गी कामना प्रधान और सुखवादी होने के साथ-साथ अध्यात्मवादी है।
- चौथे वैदिक जी०एन०एच० रसवादी ओर वर्गनिरपेक्ष है।
- पांचवे वैदिक जी०एन० एच० सेक्यूलर, उदार और साम्प्रदायिकता निरपेक्ष है
और
- अन्तिम वैदिक जी०एन०एच० में जिज्ञासा, रहस्यबोध, सौन्दर्यबोध और आदिम भय - इनमें सहोदर रूप से निहित
हैं।
उपविषय -
1) PSYCHOLOGICAL
WELL-BEING मनः-स्वस्थता
2) HEALTH आरोग्य
3) USE OF TIME समय उपयोग
4) COMMUNITY VITALITY सामाजिक गतिशीलता /अग्रसरता
5) EDUCATION शिक्षा/ प्रशिक्षण/ विद्या
6) CULTURE संस्कृति
7) ENVIRONMENT पर्यावरण
8) GOVERNANCE सुशासन
9) STANDARD OF LIVING जीवन स्तर
ध्यातव्य -
१.
यह कार्यशाला है
इसमें भाषण की अनुमति नहीं है और न ही मुख्यवक्ता होगा। केवल कार्यकारी सचिव
सम्वाद की मर्यादा, प्रदत्त कार्य को अग्रसर करने के निमित्त अधिकृत होगा ।
२.
कृपया वैदिक वाङ्मय से मुख्य विषय के अधीन उपरोक्त उपविषयों
पर यथासम्भव प्रामाणिक सामग्री हिन्दी / अंग्रेजी अनुवाद एवम् सन्दर्भ सहित
प्रस्तुत करें।
३.
यह कार्यशाला संस्कृतज्ञों द्वारा राष्ट्रिय नीति प्रस्तुत
करने का विगत ६८ वर्षों मे प्रथम उपयोगितापूर्ण एवम् लाभपुरुषार्थकारी दुःसाहसपूर्ण
प्रयास होगा, अतः सम्वाद और विषय की कठिनाइयों को चुनौति के रूप स्वीकार करें।
४.
किसी भी प्रकार का यात्रा / मार्ग व्यय देने की व्यवस्था
नहीं है। मार्गव्यय आपकी मातृसंस्था द्वारा देय होगा।
५.
अपनी प्रतिभागिता की पूर्व सूचना १०-०९-२०१४ तक दूरभाष अथवा
ई-संकेत द्वरा अनिवार्य रूप से प्रेषित करें अन्यथा कार्यशाला में निश्चित स्थान
एवम् समय प्रदान करना सम्भव आयोजकों के लिए सम्भव नहीं होगा।
६.
कृपया समय का सम्मान आवश्यक रूप से करें।
आशुतोष आंगिरस डा० देश बन्धु
समन्वयक प्राचार्य
संस्कृत विभाग स० ध० कालेज (लाहौर)
०९८९६३-९४५६९, ०९४६४५५८६६७