द्वि-दिवसीय
राष्ट्रिय सम्वाद गोष्ठी एवम् कार्यशाला
RETHINKING BASIC CONCEPTS OF PSYCHOLOGICAL AND COUNCSELLING TECHNIQUES IN INDIAN TRADITION
भारतीय परम्परा में मनोविज्ञान की मूल अवधारणाएं एवम् परामर्श पद्धतियां- एक पुनःविचार
दिनांक-27-28 फ़रवरी, 2009
Sponsored by- ICSSR, P.U., Chandigarh
मान्यवर_________________,
संस्कृत की पुनः संरचना योजना के अन्तर्गत संस्कृत, संगीत विभाग उपरोक्त विषय पर आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी एवम् कार्यशाला में पत्र प्रस्तुति एवम् समालोचन के लिए सादर आमन्त्रित करने में गौरवान्वित अनुभव करता है।
इस सम्वाद गोष्ठी के आयोजन का मुख्य कारण है कि भारतीय मनोविज्ञान का एक औपचारिक, तार्किक व्यावहारिक प्रारूप उपस्थापित करना ताकि पाश्चात्य मनोविज्ञान और भारतीय मनोविज्ञान में मानवीय हितों को दृष्टि में रखते हुए एक सम्वाद का मार्ग खुल सके और मानवीय चेतना के उन आयामों को टटोला जा सके जिसकी आवश्यकता आज सम्पूर्ण मानवता को है और इसमें मूलभूत प्रश्न यह है कि भारतीय मनोविज्ञान के नाम पर साहित्य में, शास्त्र में, परम्परा में, संस्कृति में, जीवन में, व्यवहार में जो कुछ भी सामग्री उपलब्ध है, क्या उसके आधार पर एक निश्चित प्रारूप प्रस्तुत किया जा सकता है और यदि किया जा सकता है तो वह क्या है या क्या हो सकता है और साथ ही यह भी स्पष्ट कर लेना चहिए कि क्या मनोविज्ञान साईकालोजी का सही अनुवाद है क्योंकि पश्चिम में “साईकी” (“Psyche”) शब्द का अपना एक इतिहास है जो एक सांस्कृतिक-वैज्ञानिक-दार्शनिक मूल्य के रूप में प्रयोग होता है जबकि भारत में मन “अन्तःकरण” का एक भाग है और इस अन्तःकरण में मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सम्मिलित हैं अतः अन्तःकरण शब्द तो सम्भवतः साईकोलोजी का समीपवर्ती अनुवाद हो सकता है परन्तु फ़िर भी भारतीय मनोविज्ञान को परिभाषित करने में कई व्यावहारिक कठिनाइयां दृष्टिगत होती हैं जिनकी चर्चा इस गोष्ठी में अपेक्षित है ।साथ ही साथ यह भी ध्यातव्य है कि मनोविज्ञान को इस प्रकार परिभाषित किया जाए कि वह अध्यात्म के क्षेत्र का अतिक्रमण न करे और वह दैनन्दिन समस्याओं का विश्लेषण करे भी और करना सिखाए भी। वेद, उपनिषद्, साहित्य और दर्शन में अनेक गुणात्मक और विश्लेषण पूर्ण तथ्य मन के विषय में कहे गए हैं जिनकी चर्चा इस पक्ष से अपेक्षित है कि वह सब तथ्य मिल कर भारतीय मनोविज्ञान का क्या और कैसा स्वरूप प्रस्तुत करने में सक्षम है।
कतिपय विचार बिन्दु-
• भारतीय मनोविज्ञान से हम क्या समझते हैं?
• क्या मनोविज्ञान “Psychology” विषय का किसी भी प्रकार से सही अनुवाद हो सकता है?
• क्या मन बुद्धि चित्त अहंकार वृत्ति आत्मा सत् चित्त् आनन्द जीव कोश कर्म आदि शब्दों का अंग्रेजी में परिनिष्ठित (realistic) अनुवाद सम्भव है?
• क्या उपरोक्त शब्दों की व्याख्याएं अतिव्याप्ति (over generalization) या सांकर्य (overlapping) दोष पीड़ित नहीं है?
• भारतीय मनोविज्ञान के विषय में जो कुछ भी सूचना सामग्री उपलब्ध है क्या वह पर्याप्त एवम् व्यवस्थित है ?
• क्या उपलब्ध विषय सामग्री का उपयोग वैज्ञानिक पद्धति से करना सम्भव है?
क्या भारतीय मनोविज्ञान को एक विषय के रूप में कम से कम बी०ए०/बी० एस० सी० में पढाना सम्भव है ?और यदि है, तो अभी तक इस सन्दर्भ में हमने क्या प्रयत्न किए और यदि प्रयत्न नहीं किया तो संस्कृत की रक्षा के नाम पर हमने क्या किया? विशेष रूप से विश्वविद्यालयों के स्तर पर?
• Have there been any terms, systems, thinking processes in Indian tradition regarding psychology?
• If there had been any thing which deals with the psychological issues in Indian tradition then a serious investigation is needed so as to find out not only new dimensions in Psychology but also to find a better alternative psychological system?
• Primary investigations has led us to believe that Indian tradition deals with nature of consciousness, mind, nervous system, behavior of individuals or society, in a different manner. There are different schools of Indian tradition which not only conceptualize an advance frame-work for psychology but also practise them in a very indigenous manner which makes psychology to think in more humanistic terms like jiva, bhuta, praani etc.
• How can different schools of Indian psychology like- Vedic, Mimaanasaa, Saamkhya-yoga, Vedanata, Buddhist, Jain, Tantra, ayurveda etc. be used to add more meaning to the realms of psychology?
• Can there be any creative dialogue between the Indian systems of psychological thinking and the western understanding of psychology?
• Can India contribute its experiences of psychic understanding to the world at large or humanity in its own terms in different fields of psychology?
संगोष्ठी से पूर्व उपरोक्त विषय पर ग्रन्थ प्रकाशित करने की योजना के अधीन आपसे साग्रह निवेदन है कि अपना शोधपत्र निम्नांकित विषयों के सन्दर्भ में ही प्रेषित करें। कृपया पत्र के पूर्वकथन में समस्या/ प्रश्न/जिज्ञासा/आपत्ति/आक्षेप/ स्थिति को आधुनिक सन्दर्भ में परिभाषित करें तदनन्तर स्वपक्ष स्थापित करें। शोधपत्र का विषय शास्त्र एवम् लोक परम्परा के अनुकूल होने के साथ साथ बुद्धिवादिता और प्रयोगार्हता का पात्र हो। इसी कारण को ध्यान में रखते हुए ग्रन्थ के दो भाग किए गए हैं-
१. सिद्धान्त पक्ष Theory > Man and Natureमनुष्य एवम् प्रकृति, Nervous system नाड़ी / स्नायुमण्डल, Mind अन्तःकरण, Emotions and sentiment भाव , Process of knowledgeज्ञान प्रक्रिया, Action कर्म, Language/ Speech वाक् / भाषा
२. व्यवहार पक्ष Applied Aspect > [Corrective methods उपाय प्रक्रियाएँ- योग , प्राणायाम, ध्यान, मुद्राएं, न्यास, चिकित्सकीय ज्योतिष, कथा, संगीत, मन्त्र तथा अन्य कलाएं आदि]
इस सन्दर्भ में ध्यातव्य है कि भारतीय परामर्श पद्धतियों में दुःख के समाजीकरण की प्रक्रिया [सत्यनारायण कथा], जडता, मन्दता, हिंसा, अवसाद, मानसिक विचलन आदि के लिए प्रयोग की जानी वाली प्रक्रियाओं का विश्लेषण जैसे- गुरू शिष्य सम्वाद [पञ्चतन्त्र, हितोपदेश, उपनिषद्], पति-पत्नी सम्वाद [त्रिपुरा-रहस्य], नरनारायण सम्वाद [गीता], नारदीय,जैन,बौद्ध, पौराणिक परामर्श पद्धतियाँ इत्यादि को आधार बना कर आधुनिक उपयोग की योग्यता के अनुकूल प्रस्तुति की आपसे अपेक्षा है।
उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में आपके प्रश्नों का, उत्तरों का, सुझावों और वैचारिक आयामों का विनम्रतापूर्ण स्वागत है। कृपया अपनी उपस्थिति से हमें अनुगृहीत करें।
विशेष-
१. शोधपत्र की कम्पयूटरीकृत साफ़्ट एवं हार्ड प्रति आवश्यक रूप से दिनांक ०५ जनवरी,२००९ तक आवश्यक रूप से पहुंच जानी चाहिए। फ़ान्ट अंग्रेज़ी भाषा के लिए Times New Roman [12] तथा हिन्दी भाषा के लिए यूनिकोड अथवा कृतिदेव[१२] माईक्रोसाफ़्ट वर्ड में प्रेषित करने चाहिए।
२. पंजीकरण शुल्क-२००/-
३. ठहरने की व्यवस्था के लिए पूर्वसूचना अवश्य दें ।
४. यात्रा भात्ता सामान्य श्रेणी का नियमानुसार देय होगा।
डा० आशुतोष अंगिरस डा० रश्मि चौधरी डा० देशबन्धु ,
संगोष्ठी निदेशक संगोष्ठी सचिव प्राचार्य
098963-94569 09896473740 09812053283
ई-मेल- sriniket2008@gmail.com
ब्लाग- http//sanatan sanskrit.blogspot.com
http//angiras.blog.co.in
आयोजन समिति
, प्रो० नीलम अहूजा, प्रो० कमलेश सिंह, डा० उमा शर्मा, डा० परमजीत कौर
09466046186 09416862076
डा० सतवीर शर्मा, प्रो० श्वेता उपाध्याय, , श्री हेमचन्द भारद्वाज श्री शशी शर्मा,
09416828386 09466693634 09416157454
विशिष्ट सहयोग- डा० राजेन्द्र शर्मा, अध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, जी०एम० एन० कालेज, अम्बाला
छावनी। मो०-09416553630, ई-मेल- arianhorse@yahoo.com
कार्यक्रम
RETHINKING BASIC CONCEPTS OF PSYCHOLOGICAL AND COUNCSELLING TECHNIQUES IN INDIAN TRADITION
भारतीय परम्परा में मनोविज्ञान की मूल अवधारणाएं एवम् परामर्श पद्धतियां- एक पुनःविचार
दिनांक-27-28 फ़रवरी, 2009
प्रथम दिवस [दिनांक-27 फ़रवरी, 2009]
पंजीकरण - ०९.०० से ०९.३० तक
आद्युन्मेष – ९.३० से ११.०० तक
चाय-पान- ११.०० से ११.१५ तक
प्रथम उन्मेष- ११.१५ से १.३० तक
भोजनावकाश –१.३० से २.१५ तक
द्वितीय उन्मेष -२.१५ से ४.०० तक
चाय-पान - ४.०० से ४.१५ तक
तृतीय उन्मेष –४.१५ से ५.३० तक
द्वितीय दिवस [ दिनांक-28 फ़रवरी, 2009]
चतुर्थ उन्मेष – ९.०० से ११.३० तक
चाय-पान - ११.३० से ११.४५ तक
पंचम उन्मेष – ११.४५ से १.३० तक
भोजनावकाश - १.३० से २.१५ तक
निमेष – २.१५ से ४.३० तक
चाय-पान
राष्ट्रिय सम्वाद गोष्ठी एवम् कार्यशाला
RETHINKING BASIC CONCEPTS OF PSYCHOLOGICAL AND COUNCSELLING TECHNIQUES IN INDIAN TRADITION
भारतीय परम्परा में मनोविज्ञान की मूल अवधारणाएं एवम् परामर्श पद्धतियां- एक पुनःविचार
दिनांक-27-28 फ़रवरी, 2009
Sponsored by- ICSSR, P.U., Chandigarh
मान्यवर_________________,
संस्कृत की पुनः संरचना योजना के अन्तर्गत संस्कृत, संगीत विभाग उपरोक्त विषय पर आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी एवम् कार्यशाला में पत्र प्रस्तुति एवम् समालोचन के लिए सादर आमन्त्रित करने में गौरवान्वित अनुभव करता है।
इस सम्वाद गोष्ठी के आयोजन का मुख्य कारण है कि भारतीय मनोविज्ञान का एक औपचारिक, तार्किक व्यावहारिक प्रारूप उपस्थापित करना ताकि पाश्चात्य मनोविज्ञान और भारतीय मनोविज्ञान में मानवीय हितों को दृष्टि में रखते हुए एक सम्वाद का मार्ग खुल सके और मानवीय चेतना के उन आयामों को टटोला जा सके जिसकी आवश्यकता आज सम्पूर्ण मानवता को है और इसमें मूलभूत प्रश्न यह है कि भारतीय मनोविज्ञान के नाम पर साहित्य में, शास्त्र में, परम्परा में, संस्कृति में, जीवन में, व्यवहार में जो कुछ भी सामग्री उपलब्ध है, क्या उसके आधार पर एक निश्चित प्रारूप प्रस्तुत किया जा सकता है और यदि किया जा सकता है तो वह क्या है या क्या हो सकता है और साथ ही यह भी स्पष्ट कर लेना चहिए कि क्या मनोविज्ञान साईकालोजी का सही अनुवाद है क्योंकि पश्चिम में “साईकी” (“Psyche”) शब्द का अपना एक इतिहास है जो एक सांस्कृतिक-वैज्ञानिक-दार्शनिक मूल्य के रूप में प्रयोग होता है जबकि भारत में मन “अन्तःकरण” का एक भाग है और इस अन्तःकरण में मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सम्मिलित हैं अतः अन्तःकरण शब्द तो सम्भवतः साईकोलोजी का समीपवर्ती अनुवाद हो सकता है परन्तु फ़िर भी भारतीय मनोविज्ञान को परिभाषित करने में कई व्यावहारिक कठिनाइयां दृष्टिगत होती हैं जिनकी चर्चा इस गोष्ठी में अपेक्षित है ।साथ ही साथ यह भी ध्यातव्य है कि मनोविज्ञान को इस प्रकार परिभाषित किया जाए कि वह अध्यात्म के क्षेत्र का अतिक्रमण न करे और वह दैनन्दिन समस्याओं का विश्लेषण करे भी और करना सिखाए भी। वेद, उपनिषद्, साहित्य और दर्शन में अनेक गुणात्मक और विश्लेषण पूर्ण तथ्य मन के विषय में कहे गए हैं जिनकी चर्चा इस पक्ष से अपेक्षित है कि वह सब तथ्य मिल कर भारतीय मनोविज्ञान का क्या और कैसा स्वरूप प्रस्तुत करने में सक्षम है।
कतिपय विचार बिन्दु-
• भारतीय मनोविज्ञान से हम क्या समझते हैं?
• क्या मनोविज्ञान “Psychology” विषय का किसी भी प्रकार से सही अनुवाद हो सकता है?
• क्या मन बुद्धि चित्त अहंकार वृत्ति आत्मा सत् चित्त् आनन्द जीव कोश कर्म आदि शब्दों का अंग्रेजी में परिनिष्ठित (realistic) अनुवाद सम्भव है?
• क्या उपरोक्त शब्दों की व्याख्याएं अतिव्याप्ति (over generalization) या सांकर्य (overlapping) दोष पीड़ित नहीं है?
• भारतीय मनोविज्ञान के विषय में जो कुछ भी सूचना सामग्री उपलब्ध है क्या वह पर्याप्त एवम् व्यवस्थित है ?
• क्या उपलब्ध विषय सामग्री का उपयोग वैज्ञानिक पद्धति से करना सम्भव है?
क्या भारतीय मनोविज्ञान को एक विषय के रूप में कम से कम बी०ए०/बी० एस० सी० में पढाना सम्भव है ?और यदि है, तो अभी तक इस सन्दर्भ में हमने क्या प्रयत्न किए और यदि प्रयत्न नहीं किया तो संस्कृत की रक्षा के नाम पर हमने क्या किया? विशेष रूप से विश्वविद्यालयों के स्तर पर?
• Have there been any terms, systems, thinking processes in Indian tradition regarding psychology?
• If there had been any thing which deals with the psychological issues in Indian tradition then a serious investigation is needed so as to find out not only new dimensions in Psychology but also to find a better alternative psychological system?
• Primary investigations has led us to believe that Indian tradition deals with nature of consciousness, mind, nervous system, behavior of individuals or society, in a different manner. There are different schools of Indian tradition which not only conceptualize an advance frame-work for psychology but also practise them in a very indigenous manner which makes psychology to think in more humanistic terms like jiva, bhuta, praani etc.
• How can different schools of Indian psychology like- Vedic, Mimaanasaa, Saamkhya-yoga, Vedanata, Buddhist, Jain, Tantra, ayurveda etc. be used to add more meaning to the realms of psychology?
• Can there be any creative dialogue between the Indian systems of psychological thinking and the western understanding of psychology?
• Can India contribute its experiences of psychic understanding to the world at large or humanity in its own terms in different fields of psychology?
संगोष्ठी से पूर्व उपरोक्त विषय पर ग्रन्थ प्रकाशित करने की योजना के अधीन आपसे साग्रह निवेदन है कि अपना शोधपत्र निम्नांकित विषयों के सन्दर्भ में ही प्रेषित करें। कृपया पत्र के पूर्वकथन में समस्या/ प्रश्न/जिज्ञासा/आपत्ति/आक्षेप/ स्थिति को आधुनिक सन्दर्भ में परिभाषित करें तदनन्तर स्वपक्ष स्थापित करें। शोधपत्र का विषय शास्त्र एवम् लोक परम्परा के अनुकूल होने के साथ साथ बुद्धिवादिता और प्रयोगार्हता का पात्र हो। इसी कारण को ध्यान में रखते हुए ग्रन्थ के दो भाग किए गए हैं-
१. सिद्धान्त पक्ष Theory > Man and Natureमनुष्य एवम् प्रकृति, Nervous system नाड़ी / स्नायुमण्डल, Mind अन्तःकरण, Emotions and sentiment भाव , Process of knowledgeज्ञान प्रक्रिया, Action कर्म, Language/ Speech वाक् / भाषा
२. व्यवहार पक्ष Applied Aspect > [Corrective methods उपाय प्रक्रियाएँ- योग , प्राणायाम, ध्यान, मुद्राएं, न्यास, चिकित्सकीय ज्योतिष, कथा, संगीत, मन्त्र तथा अन्य कलाएं आदि]
इस सन्दर्भ में ध्यातव्य है कि भारतीय परामर्श पद्धतियों में दुःख के समाजीकरण की प्रक्रिया [सत्यनारायण कथा], जडता, मन्दता, हिंसा, अवसाद, मानसिक विचलन आदि के लिए प्रयोग की जानी वाली प्रक्रियाओं का विश्लेषण जैसे- गुरू शिष्य सम्वाद [पञ्चतन्त्र, हितोपदेश, उपनिषद्], पति-पत्नी सम्वाद [त्रिपुरा-रहस्य], नरनारायण सम्वाद [गीता], नारदीय,जैन,बौद्ध, पौराणिक परामर्श पद्धतियाँ इत्यादि को आधार बना कर आधुनिक उपयोग की योग्यता के अनुकूल प्रस्तुति की आपसे अपेक्षा है।
उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में आपके प्रश्नों का, उत्तरों का, सुझावों और वैचारिक आयामों का विनम्रतापूर्ण स्वागत है। कृपया अपनी उपस्थिति से हमें अनुगृहीत करें।
विशेष-
१. शोधपत्र की कम्पयूटरीकृत साफ़्ट एवं हार्ड प्रति आवश्यक रूप से दिनांक ०५ जनवरी,२००९ तक आवश्यक रूप से पहुंच जानी चाहिए। फ़ान्ट अंग्रेज़ी भाषा के लिए Times New Roman [12] तथा हिन्दी भाषा के लिए यूनिकोड अथवा कृतिदेव[१२] माईक्रोसाफ़्ट वर्ड में प्रेषित करने चाहिए।
२. पंजीकरण शुल्क-२००/-
३. ठहरने की व्यवस्था के लिए पूर्वसूचना अवश्य दें ।
४. यात्रा भात्ता सामान्य श्रेणी का नियमानुसार देय होगा।
डा० आशुतोष अंगिरस डा० रश्मि चौधरी डा० देशबन्धु ,
संगोष्ठी निदेशक संगोष्ठी सचिव प्राचार्य
098963-94569 09896473740 09812053283
ई-मेल- sriniket2008@gmail.com
ब्लाग- http//sanatan sanskrit.blogspot.com
http//angiras.blog.co.in
आयोजन समिति
, प्रो० नीलम अहूजा, प्रो० कमलेश सिंह, डा० उमा शर्मा, डा० परमजीत कौर
09466046186 09416862076
डा० सतवीर शर्मा, प्रो० श्वेता उपाध्याय, , श्री हेमचन्द भारद्वाज श्री शशी शर्मा,
09416828386 09466693634 09416157454
विशिष्ट सहयोग- डा० राजेन्द्र शर्मा, अध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, जी०एम० एन० कालेज, अम्बाला
छावनी। मो०-09416553630, ई-मेल- arianhorse@yahoo.com
कार्यक्रम
RETHINKING BASIC CONCEPTS OF PSYCHOLOGICAL AND COUNCSELLING TECHNIQUES IN INDIAN TRADITION
भारतीय परम्परा में मनोविज्ञान की मूल अवधारणाएं एवम् परामर्श पद्धतियां- एक पुनःविचार
दिनांक-27-28 फ़रवरी, 2009
प्रथम दिवस [दिनांक-27 फ़रवरी, 2009]
पंजीकरण - ०९.०० से ०९.३० तक
आद्युन्मेष – ९.३० से ११.०० तक
चाय-पान- ११.०० से ११.१५ तक
प्रथम उन्मेष- ११.१५ से १.३० तक
भोजनावकाश –१.३० से २.१५ तक
द्वितीय उन्मेष -२.१५ से ४.०० तक
चाय-पान - ४.०० से ४.१५ तक
तृतीय उन्मेष –४.१५ से ५.३० तक
द्वितीय दिवस [ दिनांक-28 फ़रवरी, 2009]
चतुर्थ उन्मेष – ९.०० से ११.३० तक
चाय-पान - ११.३० से ११.४५ तक
पंचम उन्मेष – ११.४५ से १.३० तक
भोजनावकाश - १.३० से २.१५ तक
निमेष – २.१५ से ४.३० तक
चाय-पान